Tuesday, October 12, 2010

रिश्ते

हम आते हैं
और एक दिन चले जाते हैं,
इस बीच-
कितने रिश्तों से जुड़ जाते हैं!
रिश्ते-
कुछ ऊपर से जुड़ कर आते हैं,
कुछ जोड़ लिए जाते हैं!
कुछ खुद ब खुद निभ जाते हैं,
कुछ निभा लिए जाते हैं!
कुछ टूट जाते हैं,
कुछ तोड़ लिए जाते हैं!
कितने रिश्तों में हम उलझ जाते हैं,
कितने हमें उलझाते हैं!
मगर-
जो रूह से जुड़ जाते हैं,
वो तो सदियों और जन्मों के नाते हैं!
क्यों कभी,
रूह में रह कर भी रूह को तड़पाते हैं?
किस तरह
एक ज़िन्दगी तमाम किया करते हैं?
ये कैसे रिश्ते हैं?
ये कैसे नाते हैं?
जन्म निकल जाते हैं,
हम समझ नहीं पाते हैं!
हम आते हैं
और एक दिन चले जाते हैं,
रिश्ते पीछे ही छूट जाते हैं!
बंधन सारे ही टूट जाते हैं!

कामाक्षा माथुर -14 March 2009

Sunday, March 28, 2010

माँ!
तू चली गई कहाँ?
बहुत याद आ रही है माँ!
आंसू थमते ही नहीं,
तू ही पोंछती थी ना!
जब कभी होता था दिल उदास,
सिर्फ तू और सिर्फ तू ही होती थी पास!
दुलार से सर पर रखती थी हाथ!
देख-
तेरी दी हुई शिक्षा निभा रही हूँ!
तेरी दिखाई राह पर जिए जा रही हूँ!
बस-
एक बार सपने में आजा ना!
फिर,
प्यार से सिर पे हाथ सहला जा ना!

तू चली गई कहाँ!
बहुत याद आ रही है माँ!

तू वहां आराम से तो है न?